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- January 14, 2023
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मकर संक्रांति त्योहार का महत्व, मकर संक्रांति के दिन ही भीष्म पितामह ने क्यों त्यागा प्राण, जानिए पौराणिक कथा
मकर संक्रांति त्योहार का महत्व, मकर संक्रांति के दिन ही भीष्म पितामह ने क्यों त्यागा प्राण, जानिए पौराणिक कथा मकर…
मकर संक्रांति त्योहार का महत्व, मकर संक्रांति के दिन ही भीष्म पितामह ने क्यों त्यागा प्राण, जानिए पौराणिक कथा
मकर संक्रांति त्योहार का महत्व– मकर संक्रांति का त्यौहार प्रकृति के बदलाव का त्यौहार है। 15 जनवरी को मनाया जाने वाला मकर संक्रांति का त्यौहार पूरे भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। आज हम आपको एक ऐसी पौराणिक कथा के बारे में बताएंगे जिससे आपको पता चलेगा कि भीष्म पितामह ने मकर संक्रांति वाले दिन ही क्यों प्राण त्यागा था? मकर संक्रांति वाले दिन अपना प्राण इसके पीछे क्या है रहस्य। यह जानने के लिए हमारे साथ बने रहे। मकर संक्रांति पर्व क्यों मनाया जाता है? प्रश्नों का उत्तर भी आपको प्राप्त होगा।
नवचेतना और शुभता का प्रतीक मकर संक्रांति
मकर संक्रांति का पावन दिन जीवन में नवचेतना और शुभता लेकर आता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन दान पुण्य करने से सभी पाप कट जाते हैं। शुभ और नवचेतना का यह पर्व हम भारतीयों में हर्ष उल्लास भरता है।
मकर संक्रांति एक ऐसा त्यौहार है जिसे भारत के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है।
मकर संक्रांति त्योहार का महत्व- कर्नाटक इसे संक्रांति के नाम से जाना जाता है। आपको बता दें कि इस त्यौहार को मकर संक्रांति कहने का वैज्ञानिक कारण है। धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है इस दिन राशि का प्रवेश करना संक्रांति कहलाता है और यह मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इसे मकर संक्रांति त्योहार कहा जाता है।
सूरज उत्तरायण होकर मकर राशि में भ्रमण करता है, तब पूरे भारत में प्रकृति में बदलाव होता है ठंडी से गर्मी ऋतु की तरफ हम प्रवेश करते हैं। इसलिए इस त्यौहार को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
तमिलनाडु और केरल में इस पोंगल के नाम से यह त्यौहार मनाया जाता है। पंजाब और हरियाणा के राज्यों में इस त्यौहार को माघी भी कहा जाता है। मां की इसलिए कहा जाता है क्योंकि हिंदी महीना के अनुसार यह त्यौहार मार्ग में पड़ता है और माघ का महत्व पुराणों में वर्णित है।
मकर संक्रांति को उत्तरायण गुजरात और राजस्थान में कहा जाता है। बताया कि इस दिन सूर्य की गति उत्तर दिशा की ओर हो जाती है इसलिए उत्तरायण भी इस त्यौहार को कहा जाता है। बिहार में इसे खिचड़ी के नाम से जाना जाता है, पारंपरिक व्यंजन खिचड़ी इस दिन बड़ी चाव से खाई जाती है।
मकर संक्रांति एक ऐसा त्यौहार है जो हर साल 15 जनवरी को मनाया जाता है, मान्यता है कि हजारों साल पहले यह दिन 14 जनवरी को पड़ता था। उत्तरायण का दिन बड़ा ही शुभ होता है, इस दिन दान करना और पूजा पाठ करना शुभ फल देने वाला होता है।
प्रकृति के इसी बदला के साथ जीवन का संचार शुरू होता है।
मान्यता है कि इस दिन मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
हम आपको ले चलते हैं महाभारत के युद्ध के समय लड़ रहे थे। धनुष तीर संचालन में दक्ष अर्जुन से उनका सामना हुआ। अर्जुन के भीष्म पितामह घायल हो गए। उनके शरीर में सैकड़ों तीर लग चुका था। आपको बता दें कि उनको इच्छा मृत्यु का वरदान था। लेकिन जब वे बाण से घायल हुए, तब सूर्य दक्षिणायन में थे। शास्त्रों के अनुसार, जो लोग उत्तरायण में अपने प्राण त्यागते हैं। उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है।
पुराणों की कथा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण दिशा की ओर गति किया, तो इस दिन भीष्म पितामह ने अपना सांसारिक शरीर त्याग दिया। यही कारण था कि भीष्म पितामह मृत्यु शैया पर लेटे रहे और सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा करते रहे। युद्ध के समय मृत्यु शैया में लेटे हुए भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने का समय मकर संक्रांति के दिन को चुना था।
आपकी जानकारी के लिए बता दे कि महाभारत के अंतिम अध्याय में भीष्म पितामह के प्राण त्यागने का वर्णन मिलता है।
मकर संक्रांति के कई पौराणिक कथाएं हैं,
भागीरथी अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए स्वर्ग लोक से गंगा का अवतरण कराया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगा देवलोक से उतरकर पृथ्वी लोक में बहने लगी थी। आगे आगे भागीरथी और पीछे पीछे गंगा नदी बहते हुए आगे बढ़ रही थी और कपिल मुनि के आश्रम में भागीरथी के पूर्वज को मोक्ष दिलाती है और गंगा सागर में मिल जाती है। तब से लेकर अब तक गंगा करोड़ों मनुष्यों को पाप मुक्त करती आ रही है। इसीलिए गंगा को मोक्षदायिनी कहा जाता है।
मकर संक्रांति का त्यौहार एक तरह से अनेकता में एकता का त्यौहार है। अलग-अलग भौगोलिक स्थिति के कारण भारत की आत्मा उसकी संस्कृति है और यह संस्कृति प्रकृति के द्वारा संचालित होती है। इस दिन मकर संक्रांति त्यौहार इसीलिए हर्षोल्लास से मनाया जाता है। वैज्ञानिक चेतना का प्रभाव हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा रहा है। इसलिए इस त्यौहार को एक प्राकृतिक घटना के रूप में मनाया जाता है।