सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात कराने की दी अनुमति, कहा- शादी से पहले प्रेग्नेंट होना दुःखदायी

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात करने की अनुमति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट का कहना…

सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात कराने की दी अनुमति

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात करने की अनुमति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि शादी से पहले गर्भवती होना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। पीड़िता को गर्भवती हुए 27 सप्ताह से अधिक का समय हो गया है। पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट पर ध्यान देते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना और उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट द्वारा पीड़िता को गर्भपात नहीं कराने का आदेश सही नहीं था।

गर्भपात करने के यह है नियम

ATP मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी अधिनियम के तहत, गर्भावस्था को समाप्त करने की ऊपरी सीमा विवाहित महिलाओं और दुष्कर्म पीड़िता सहित विशेष श्रेणियों और अन्य कमजोर महिलाएं जैसे विकलांग महिलाओं, नाबालिगों के लिए 24 सप्ताह है। 24 सप्ताह पूरी होने के बाद गर्भपात कराना कानूनी अपराध माना गया है।

शादी से पहले गर्भावस्था हानिकारक

शीर्ष अदालत ने कहा कि भारतीय समाज में विवाह के बाद गर्भवती होना न केवल कपल्स के लिए, बल्कि पूरे परिवार और दोस्तों के लिए भी खुशी और जश्न का मौका होता है। लेकिन इसके विपरीत शादी से पहले गर्भावस्था हानिकारक है। विशेष रूप से यौन उत्पीड़न या दुर्व्यवहार के मामलों में गर्भवती महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले तनाव और आघात का कारण है। एक महिला का यौन उत्पीड़न एक चिंताजनक हैं और ऐसे में गर्भवती हो जाना और ज्यादा चिंता में डाल देता है।

भ्रूण जिंदा मिला तो राज्य कदम उठाए

पीठ ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट्स को मद्देनजर रखते हुए, हम पीड़िता को गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दे रहे हैं। पीठ ने आगे कहा, यदि भ्रूण जीवित पाया जाता है, तो अस्पताल भ्रूण के जीवित रहने को सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक सहायता देगा। यदि भ्रूण जीवित रहता है, तो राज्य सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएगा कि बच्चे को गोद लिया जाए।

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