‘चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर ‘चंद्रयान 3′ की लैंडिग की बात गलत’, चीन के शीर्ष वैज्ञानिक ने किया दावा

चीन के एक वैज्ञानिक ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर भारत के ‘चंद्रयान 3’ की सफल लैंडिंग के दावे को…

चंद्रयान 3

चीन के एक वैज्ञानिक ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर भारत के ‘चंद्रयान 3’ की सफल लैंडिंग के दावे को खारिज कर दिया है। चीनी वैज्ञानिक ओयांग जियुआन ने कहा कि भारत का ‘चंद्रयान 3’ चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर नहीं बल्कि उससे काफी दूर उतरा है। बता दें, ‘चंद्रयान 3’ गत 23 अगस्त को चंद्रमा की सतह पर उतरा था और ऐसा करनेवाला भारत चौथा जबकि दक्षिणी ध्रुव पर उतारनेवाला पहला देश बन गया था।

इस सफलता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे अविस्मरणीय क्षण बताया था। उन्होंने कहा था कि यह अभूतपूर्व है। यह नये भारत का विजय घोष है। भारत अब चंद्रमा पर है और वह उसके दक्षिणी ध्रुव पर पहुंच गया है। यह उपलब्धि किसी अन्य देश ने हासिल नहीं किया है। हम इतिहास बनते देख रहे हैं। लेकिन चीन के पहले चंद्र मिशन के मुख्य वैज्ञानिक ओयांग जियुआन ने भारत के इस दावे की आलोचना की और कहा कि उसका मिशन दक्षिणी ध्रुव के करीब भी नहीं है।

‘चंद्रयान 3’ दक्षिणी ध्रुव से 600 किमी दूर

चीनी अखबार साइंस टाइम्स से बात करते हुए जियुआन ने कहा कि भारत का रोवर 69 डिग्री दक्षिणी अक्षांश पर उतरा है, जो दक्षिणी ध्रुव से काफी दूर है। ऐसा कहा जाता है कि चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव 88.5 और 90 डिग्री पर स्थित है। ऐसे में भारत का ‘चंद्रयान 3’ ध्रुवीय क्षेत्र से लगभग 619 किमी दूर है। उन्होंने कहा कि नासा द्वारा ली गई तस्वीर में यह पुष्टि हुई है कि ‘चंद्रयान 3’ का लैंडिंग बिंदु दक्षिणी ध्रुव से लगभग 600 किमी दूर था।

उन्होंने बताया कि चीन का अंतरिक्ष कार्यक्रम भारत की तुलना में काफी आधुनिक है। उन्होंने कहा कि 2010 में ही चीन ने ‘चांग ई-2’ को सफलतापूर्वक लॉन्च किया था। इसके बाद ऑर्बिटर और लैंडर को सीधे पृथ्वी और चंद्रमा के स्थानांतरण कक्षा में भेजने में हम पूरी तरह सक्षम हो गए हैं लेकिन भारत के लॉन्च व्हीकल को देखते हुए वे ऐसा नहीं कर पाए हैं।

आखिर दक्षिणी ध्रुव पर उतरना मुश्किल क्यों?

स्पेस डॉट कॉम के मुताबिक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना काफी मुश्किल है। क्योंकि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अधिकतर समय सूर्य की रोशनी नहीं पड़ती। इस कारण वहां का तापमान काफी कम रहता है। इससे पानी हमेशा बर्फ के रूप में मौजूद रहता है। इससे वहां पर सॉफ्ट लैंडिंग में समस्या आती है। इसके अलावा दक्षिणी ध्रुव पर भारी गड्ढे हैं और रोशनी भी कम है, जिससे लैंडिंग में मुश्किलें आती हैं।

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