- आध्यात्मिक
- July 5, 2023
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कावड़ यात्रा: जानिए क्या है कावड़ यात्रा का इतिहास और क्या हैं इसके प्रकार?
भगवान शिव को समर्पित कावड़ यात्रा 4 जुलाई से शुरू हो गई है। यह तीर्थयात्रा हर साल श्रावण माह में…
भगवान शिव को समर्पित कावड़ यात्रा 4 जुलाई से शुरू हो गई है। यह तीर्थयात्रा हर साल श्रावण माह में होती है। इस यात्रा का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है। मान्यता के अनुसार कावड़ यात्रा भगवान शिव का एक विशेष अनुष्ठान है। शिवभक्त जिस कावड़ को लेकर निकलते हैं, उसे कावड़िया कहते हैं।

कावड़ यात्रा के दौरान केसरिया वस्त्र पहने कावड़ियों के समूह दूर-दूर से गंगा जल भरकर शिवालय तक जाते हैं। आइए आपको बताते हैं कि कावड़ यात्रा कितने प्रकार की होती है और इसका इतिहास क्या है? इस साल की बात करें तो शिव भक्तों को कावड़ यात्रा के लिए अधिक समय मिलेगा। दरअसल इस साल लीप मास के कारण श्रावण मास दो महीने तक रहेगा।
कावड़ यात्रा का इतिहास क्या है?
शिव पुराण के अनुसार समुद्र मंथन श्रावण मास में हुआ था। मंथन के दौरान चौदह प्रकार के माणिक्यों के साथ-साथ हलाहल (जहर) भी निकला। इस विष से सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने विष पी लिया। भगवान शिव ने इस विष को अपने कंठ में एकत्र कर लिया, जिससे उनका कंठ जलने लगा।
ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के भक्त रावण ने अपने गले की सूजन को कम करने के लिए गंगा जल से भगवान शिव का अभिषेक किया था। रावण ने बाल्टी में पानी भरकर बागपत स्थित पुरा महादेव में भगवान शिव का जलाभिषेक किया। तभी से कावड़ यात्रा का चलन शुरू हुआ। कावड़ यात्रा का इतिहास जानने के बाद यह भी जानिए कि इसके कितने प्रकार होते हैं।
सामान्य कावड़
सामान्य कावड़ यात्रा में कावड़िया जहां चाहें विश्राम कर सकते हैं। सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग ऐसे कावड़ियों के लिए मंडप बनाते हैं। खाने और आराम करने के बाद, कावड़िए अपनी यात्रा फिर से शुरू करते हैं। आराम करते समय हैंडल को स्टैंड पर रखा जाता है ताकि वह जमीन को न छुए।
डाक कावड़ यात्रा
जहां तक डाक कावड़ यात्रा की बात है तो यह 24 घंटे में पूरी होती है। इस यात्रा में कावड़ लाने का संकल्प लेकर 10 या उससे अधिक युवाओं का एक समूह वाहनों में सवार होकर गंगा घाटों तक जाता है। यहां ये लोग एक पार्टी बनाते हैं। इस यात्रा में शामिल समूह के एक-दो सदस्य हाथ में गंगा जल लेकर लगातार नंगे पैर दौड़ते हैं। एक के थकने के बाद दूसरा दौड़ने लगता है। इसीलिए डाक कावड़ को सबसे कठिन माना जाता है।
झांखी कावड़
कुछ शिवभक्त झांखी रखकर कावड़ यात्रा करते हैं। ऐसी गाड़ियां 70 से 250 किलोग्राम तक भार ले जाती हैं। इन झांकियों में शिवलिंग बनाने के साथ-साथ इसे रोशनी और फूलों से सजाया गया है। इसमें बच्चों को शिव बनाकर झांकी तैयार की जाती है।
दंडवत कावड़ यात्रा
इस यात्रा में कावड़िए अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए दंडवत कावड़ लेकर जाते हैं। यह यात्रा 3 से 5 किलोमीटर की होती है। इस बीच शिवभक्त शिवालयों में ही पहुंचकर शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाते हैं।
उड़ी कावड़ यात्रा
यह कावड़ यात्रा सबसे कठिन मानी जाती है। इस कावड़ की खास बात यह है कि शिवभक्त गंगा जल उठाने से लेकर जलाभिषेक तक कावड़ को अपने कंधों पर लेकर चलते हैं। इस यात्रा में शिव भक्त आमतौर पर जोड़े में कावड़ लाते हैं।